Top 5 नैतिक कहानियाँ हिंदी बच्चों के लिए -मनोरंजन के साथ शिक्षा 2025
इस लेख में हम आपके लिए लाए हैं Top 5 नैतिक कहानियाँ हिंदी (बच्चों के लिए) 2025, जो न केवल सुनने में मज़ेदार हैं, बल्कि बच्चों के दिल में ईमानदारी, मेहनत और दया जैसे गुण भी जगाती हैं। ये छोटी-छोटी कहानियाँ हर उम्र के बच्चों को सरल भाषा में बड़ी बातें सिखाती हैं।
#What Will You Learn From This Blog
- Top 5 नैतिक कहानियाँ हिंदी (बच्चों के लिए) 2025 ऐसी कहानियाँ हैं जो न सिर्फ़ बच्चों को मनोरंजन देती हैं बल्कि उन्हें ईमानदारी, मेहनत और दया जैसी महत्वपूर्ण बातें भी सिखाती हैं।
- अगर आप अपने बच्चों को सरल भाषा में जीवन की सीख देना चाहते हैं, तो Top 5 नैतिक कहानियाँ हिंदी (बच्चों के लिए) 2025 आपके लिए बिल्कुल सही हैं।
- Top 5 नैतिक कहानियाँ हिंदी (बच्चों के लिए) 2025 में शामिल हर कहानी बच्चों को मज़ेदार अंदाज़ में बड़ी सीख देती है, जिसे वे जीवनभर याद रख सकते हैं।
- यह लेख आपके लिए लाया है Top 5 नैतिक कहानियाँ हिंदी (बच्चों के लिए) 2025, जो बच्चों को सही दिशा और अच्छे संस्कार सिखाने का आसान माध्यम हैं।
#Contents:
#1.हाथी और उसके दोस्त
#2.कछुआ और खरगोश#3.सुनहरी हंस
#4. बुद्धिमान कबूतर
#5.चतुर बकरी और भेड़िया
बच्चों की सोच को सकारात्मक दिशा देने के लिए Top 5 नैतिक कहानियाँ हिंदी (बच्चों के लिए) 2025 सबसे बेहतरीन साधन हैं। ये कहानियाँ छोटी होने के बावजूद गहरी सीख छोड़ जाती हैं।
एक घना जंगल था, जहाँ तरह-तरह के जानवर रहते थे। उसी जंगल में एक चंचल बंदर और एक विशाल हाथी भी रहते थे।
बंदर बहुत शरारती था। वह पेड़ से पेड़ पर कूदता, दूसरों की चीजें छीन लेता और हर किसी का मज़ाक उड़ाता। दूसरी ओर हाथी शांत स्वभाव का था, लेकिन उसे अपनी ताकत और बड़े शरीर पर बहुत घमंड था।
एक दिन दोनों के बीच झगड़ा हो गया। बंदर ने कहा –
“हाथी भाई! तुम बस बड़े हो, पर अक्ल तो मेरे पास है। देखो, मैं पेड़ों पर चढ़ जाता हूँ, ऊँचाई से सब देख सकता हूँ और हर जगह पहुँच जाता हूँ।”
हाथी मुस्कराया और बोला –
“तुम छोटे हो, फुर्तीले हो, ये ठीक है… लेकिन मेरी ताकत का कोई मुकाबला नहीं। जब मैं चलता हूँ, पूरा जंगल कांप जाता है।”
दोनों अपनी-अपनी बातों पर अड़े रहे। तभी जंगल के जानवरों ने उन्हें एक काम सौंपा – पास के कुएँ से मीठा फल निकालकर लाना, जो अंदर गिर गया था।
हाथी कुएँ तक तो पहुँच गया, लेकिन उसका बड़ा शरीर अंदर झुक ही नहीं पाया। उसने ज़ोर लगाया पर बेकार।
फिर बंदर आया, वह फुर्ती से कुएँ में उतरा और फल पकड़ लाया। लेकिन बाहर चढ़ना उसके बस की बात नहीं थी।
कहानियाँ बच्चों की दुनिया को रंगीन बना देती हैं और उनके दिल में अच्छाई के बीज बोती हैं। तो चलिए अब सीधे शुरू करते हैं हमारी सूची – Top 5 नैतिक कहानियाँ हिंदी (बच्चों के लिए) 2025।
Moral short stories in Hindi
Let us start the moral short stories That will Teach you a lesson
#1. हाथी और उसके दोस्त-बंदर
एक घना जंगल था, जहाँ तरह-तरह के जानवर रहते थे। उसी जंगल में एक चंचल बंदर और एक विशाल हाथी भी रहते थे।
बंदर बहुत शरारती था। वह पेड़ से पेड़ पर कूदता, दूसरों की चीजें छीन लेता और हर किसी का मज़ाक उड़ाता। दूसरी ओर हाथी शांत स्वभाव का था, लेकिन उसे अपनी ताकत और बड़े शरीर पर बहुत घमंड था।
एक दिन दोनों के बीच झगड़ा हो गया। बंदर ने कहा –
“हाथी भाई! तुम बस बड़े हो, पर अक्ल तो मेरे पास है। देखो, मैं पेड़ों पर चढ़ जाता हूँ, ऊँचाई से सब देख सकता हूँ और हर जगह पहुँच जाता हूँ।”
हाथी मुस्कराया और बोला –
“तुम छोटे हो, फुर्तीले हो, ये ठीक है… लेकिन मेरी ताकत का कोई मुकाबला नहीं। जब मैं चलता हूँ, पूरा जंगल कांप जाता है।”
दोनों अपनी-अपनी बातों पर अड़े रहे। तभी जंगल के जानवरों ने उन्हें एक काम सौंपा – पास के कुएँ से मीठा फल निकालकर लाना, जो अंदर गिर गया था।
हाथी कुएँ तक तो पहुँच गया, लेकिन उसका बड़ा शरीर अंदर झुक ही नहीं पाया। उसने ज़ोर लगाया पर बेकार।
फिर बंदर आया, वह फुर्ती से कुएँ में उतरा और फल पकड़ लाया। लेकिन बाहर चढ़ना उसके बस की बात नहीं थी।
तभी हाथी ने अपनी सूँड़ बढ़ाई और बंदर को फल समेत ऊपर खींच लिया।
दोनों ने समझा –
“ताकत और अक्ल, दोनों का मिलकर काम करना ही असली समझदारी है।”
उस दिन से हाथी और बंदर सच्चे दोस्त बन गए।
सीख (Moral):हमें कभी भी अपनी ताकत या अक्ल पर घमंड नहीं करना चाहिए। जब मिलजुलकर काम किया जाए, तो कोई भी मुश्किल आसान हो जाती है।
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एक बार की बात है। एक हरे-भरे जंगल में बहुत सारे जानवर रहते थे। उन्हीं में से एक था तेज़ भागने वाला खरगोश और दूसरा था धीरे-धीरे चलने वाला कछुआ।
खरगोश को अपनी तेज़ रफ़्तार पर बहुत घमंड था। वह अकसर सब जानवरों के सामने डींगे मारता –
“मुझसे तेज़ कोई नहीं दौड़ सकता! मैं तो पलक झपकते ही मंज़िल पर पहुँच जाता हूँ।”
बेचारा कछुआ ये सब सुनकर चुप रहता। लेकिन एक दिन उसने हिम्मत करके कहा –
“भाई खरगोश, दौड़ना ही सब कुछ नहीं होता। मंज़िल तक पहुँचना ज़रूरी है, चाहे धीरे-धीरे ही क्यों न पहुँचा जाए।”
खरगोश हँस पड़ा –
“अरे कछुए! तुम और दौड़? तुम्हें देखकर तो लोग सो ही जाएँगे। चलो, अगर तुममें हिम्मत है तो मेरे साथ दौड़ लगाओ।”
कछुए ने शांत स्वर में जवाब दिया –
“ठीक है, मैं तैयार हूँ।”
सारे जंगल के जानवर इकट्ठे हो गए। मैदान में दौड़ की रेखा खींची गई। बन्दर ने झंडा उठाकर कहा –
“एक… दो… तीन… दौड़ शुरू!”
खरगोश बिजली की तरह दौड़ा और थोड़ी ही देर में कछुए से बहुत आगे निकल गया। पीछे मुड़कर देखा तो कछुआ धीरे-धीरे चलता हुआ बहुत दूर था।
खरगोश बोला –
“ये तो बड़ी आसान दौड़ है। कछुआ मुझे पकड़ ही नहीं सकता। क्यों न थोड़ी देर आराम कर लूँ?”
वह एक पेड़ के नीचे घास पर लेट गया और नींद में सो गया।
उधर कछुआ बिना रुके धीरे-धीरे चलता रहा। उसके कदम छोटे थे, लेकिन वह रुका नहीं। धीरे-धीरे उसने सोए हुए खरगोश को भी पार कर लिया और मंज़िल की ओर बढ़ गया।
जब खरगोश की नींद खुली, तो उसने देखा कछुआ लगभग फ़िनिश लाइन पर पहुँच चुका था। वह घबराकर तेज़ दौड़ा, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।
सभी जानवर खुशी से चिल्लाए –
“कछुआ जीत गया! कछुआ जीत गया!” 🎉
खरगोश शर्मिंदा होकर बोला –
“मुझे अपनी तेज़ी पर घमंड था, लेकिन आज समझ आया कि लगातार मेहनत करने वाला ही असली विजेता होता है।”
कछुए ने मुस्कुराते हुए कहा –
“घमंड से नहीं, धैर्य और लगन से मंज़िल मिलती है।”
सीख (Moral):
धीरे चलना बुरा नहीं है, अगर इंसान धैर्य और लगन से मेहनत करे तो वह तेज़ लोगों से भी आगे निकल सकता है।
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#3. सुनहरी हंस-की कहानी
एक गाँव में एक गरीब किसान अपनी पत्नी और तीन बेटियों के साथ रहता था। घर की हालत बहुत खराब थी। कभी खाने को दाने नहीं होते, कभी घर का सामान टूट जाता।
एक दिन किसान के आँगन में अचानक से एक चमचमाती सुनहरी हंस आकर बैठ गई। हंस ने मधुर स्वर में कहा –
“किसान भाई, घबराओ मत। मैं कोई साधारण हंस नहीं हूँ। मैं हर रोज़ एक सुनहरा अंडा दूँगी। इसे बेचकर तुम अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकते हो।”
किसान और उसका परिवार चकित रह गया। अगले ही दिन हंस ने सचमुच एक चमचमाता सुनहरा अंडा दिया। किसान उसे बाज़ार ले गया और अच्छे दाम में बेचकर घर का सारा खर्च चला लिया।
अब रोज़-रोज़ सुनहरे अंडे आने लगे। किसान का परिवार खुशहाल हो गया। घर में नया सामान, अच्छे कपड़े और ढेर सारा खाना आने लगा।
लेकिन धीरे-धीरे किसान की पत्नी और बेटियाँ लालच में भर गईं। एक दिन पत्नी ने कहा –
“अगर ये हंस रोज़ एक अंडा देती है, तो सोचो… इसके पेट में कितने सारे अंडे होंगे! क्यों न इसे अभी मारकर सारे अंडे निकाल लिए जाएँ?”
किसान ने पहले तो मना किया –
“नहीं, हमें जो मिल रहा है उसी में खुश रहना चाहिए। लालच करना ठीक नहीं।”
लेकिन परिवार के दबाव में आकर किसान भी लालच में आ गया। उसने हंस को मार दिया।
जब उन्होंने उसका पेट फाड़कर देखा… तो अंदर से कुछ भी नहीं निकला! न कोई अंडा, न कोई खजाना।
अब उनके पास न सुनहरी हंस रही, न सुनहरे अंडे।
गरीब किसान और उसका परिवार फिर से गरीब हो गया। सब पछताने लगे –
“काश! हम लालच न करते, तो हमेशा खुशहाल रहते।”
सीख (Moral):
लालच हमेशा बर्बादी की जड़ है। हमें जितना मिलता है, उसी में संतोष करना चाहिए।
एक दिन किसान के आँगन में अचानक से एक चमचमाती सुनहरी हंस आकर बैठ गई। हंस ने मधुर स्वर में कहा –
“किसान भाई, घबराओ मत। मैं कोई साधारण हंस नहीं हूँ। मैं हर रोज़ एक सुनहरा अंडा दूँगी। इसे बेचकर तुम अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकते हो।”
किसान और उसका परिवार चकित रह गया। अगले ही दिन हंस ने सचमुच एक चमचमाता सुनहरा अंडा दिया। किसान उसे बाज़ार ले गया और अच्छे दाम में बेचकर घर का सारा खर्च चला लिया।
अब रोज़-रोज़ सुनहरे अंडे आने लगे। किसान का परिवार खुशहाल हो गया। घर में नया सामान, अच्छे कपड़े और ढेर सारा खाना आने लगा।
लेकिन धीरे-धीरे किसान की पत्नी और बेटियाँ लालच में भर गईं। एक दिन पत्नी ने कहा –
“अगर ये हंस रोज़ एक अंडा देती है, तो सोचो… इसके पेट में कितने सारे अंडे होंगे! क्यों न इसे अभी मारकर सारे अंडे निकाल लिए जाएँ?”
किसान ने पहले तो मना किया –
“नहीं, हमें जो मिल रहा है उसी में खुश रहना चाहिए। लालच करना ठीक नहीं।”
लेकिन परिवार के दबाव में आकर किसान भी लालच में आ गया। उसने हंस को मार दिया।
जब उन्होंने उसका पेट फाड़कर देखा… तो अंदर से कुछ भी नहीं निकला! न कोई अंडा, न कोई खजाना।
अब उनके पास न सुनहरी हंस रही, न सुनहरे अंडे।
गरीब किसान और उसका परिवार फिर से गरीब हो गया। सब पछताने लगे –
“काश! हम लालच न करते, तो हमेशा खुशहाल रहते।”
सीख (Moral):
लालच हमेशा बर्बादी की जड़ है। हमें जितना मिलता है, उसी में संतोष करना चाहिए।
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#4.बुद्धिमान कबूतर और चींटी की कहानी
एक बार की बात है। गर्मी के दिनों में एक प्यास से तड़पती हुई छोटी-सी चींटी पानी की तलाश में इधर-उधर घूम रही थी। बहुत देर तक भटकने के बाद उसे एक नदी किनारे पानी दिखा।
चींटी खुश होकर बोली –
“आह! आखिरकार पानी मिल ही गया… अब प्यास बुझाऊँगी।”
वह नदी किनारे गई और पानी पीने लगी। लेकिन तभी उसका पैर फिसल गया और वह तेज़ धारा में बहने लगी।
चींटी घबराकर चिल्लाई –
“बचाओ! कोई तो मुझे बचाओ! मैं तो डूब जाऊँगी।”
उसी समय पास के पेड़ पर बैठा एक कबूतर सब देख रहा था। कबूतर का दिल दया से भर गया। उसने तुरंत पेड़ से एक पत्ता तोड़ा और नदी में गिरा दिया।
कबूतर ने कहा –
“जल्दी चींटी बहन! इस पत्ते पर चढ़ जाओ।”
चींटी किसी तरह पत्ते पर चढ़ गई और किनारे तक पहुँच गई। वह बहुत खुश हुई और बोली –
“धन्यवाद कबूतर भाई! आपने मेरी जान बचाई। मैं कभी आपका यह उपकार नहीं भूलूँगी।”
कबूतर मुस्कराते हुए बोला –
“मित्रता में उपकार नहीं गिने जाते। अगर तुम्हें मौका मिले तो दूसरों की मदद करना।”
कुछ दिनों बाद वही कबूतर उसी पेड़ पर आराम कर रहा था। तभी एक शिकारी आया और धीरे-धीरे कबूतर पर निशाना साधने लगा।
चींटी यह सब देख रही थी। उसने सोचा –
“अब मेरी बारी है कबूतर भाई का उपकार चुकाने की।”
वह चुपके से शिकारी के पास गई और उसके पैर में जोर से काट लिया। शिकारी दर्द से चिल्ला उठा –
“आह! ये किसने काटा?”
उसका निशाना चूक गया और कबूतर उड़कर सुरक्षित आसमान में चला गया।
कबूतर ने ऊपर से चींटी को देखा और मुस्कराकर कहा –
“धन्यवाद मेरी छोटी मित्र! आज तुमने मेरी जान बचा ली।”
चींटी हँसकर बोली –
“देखा कबूतर भाई, दोस्ती हमेशा काम आती है। चाहे कोई बड़ा हो या छोटा।”
सीख (Moral):
सच्ची दोस्ती में न बड़ा होता है न छोटा। समय आने पर हर कोई मदद कर सकता है।
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#5.चतुर बकरी और भेड़िया
एक पहाड़ी गाँव में एक बकरी रहती थी। वह बहुत चतुर और समझदार थी। हर रोज़ वह हरे-भरे जंगल में चरने जाती और फिर शाम को पहाड़ की गुफा में लौट आती।
उसी जंगल में एक भूखा भेड़िया भी रहता था। उसकी नज़र हमेशा बकरी पर रहती और वह सोचता –
“अगर यह बकरी हाथ लग जाए तो मेरा पेट भर जाएगा।”
एक दिन भेड़िये ने मौका देखकर गुफा के पास बकरी को रोक लिया।
भेड़िया गुर्राकर बोला –
“बकरी! आज तो तेरा काम तमाम है। अब तू मेरे पेट में जाएगी।”
बकरी घबरा तो गई, लेकिन उसने तुरंत अपने दिमाग़ का इस्तेमाल किया। वह बोली –
“भेड़िया भाई! अगर तुम मुझे अभी खा लोगे तो तुम्हें मज़ा नहीं आएगा। मैं अभी जंगल से हरी-हरी घास खाकर लौटी हूँ। मेरा पेट भरा हुआ है।
क्यों न मुझे थोड़ी देर नाचने और गाने दो, ताकि मेरा शरीर ढीला हो जाए। फिर तुम आराम से मुझे खा लेना।”
भेड़िये को उसकी बात मज़ेदार लगी। वह हँसकर बोला –
“वाह! खाने से पहले मनोरंजन भी मिल जाएगा। ठीक है, नाचो-गाओ… फिर तो मुझे दावत मिलेगी।”
बकरी ज़ोर-ज़ोर से कूदने और मिमियाने लगी—
“मैं हूँ चतुर बकरी… मैं हूँ चतुर बकरी…”
उसका शोर सुनकर गुफा के पास के कुत्ते भौंकते हुए आ गए। शोर सुनकर गाँव के लोग भी डंडे लेकर दौड़ पड़े।
भेड़िया घबराकर बोला –
“अरे ये क्या मुसीबत! अब तो मेरी खैर नहीं।”
वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ।
बकरी ने चैन की साँस ली और मुस्कराकर बोली –
“अकलमंदी ताक़त से बड़ी होती है। जल्दीबाज़ी में डरने के बजाय, दिमाग़ का इस्तेमाल करना चाहिए।”
सीख (Moral):
मुसीबत में घबराना नहीं चाहिए। चतुराई और समझदारी से हर मुश्किल से निकला जा सकता है।
मुसीबत में घबराना नहीं चाहिए। चतुराई और समझदारी से हर मुश्किल से निकला जा सकता है।