ईमानदार लकड़हारा
कहानी:
एक बार की बात है, एक गरीब लकड़हारा था जो जंगल से लकड़ियाँ काटकर अपनी रोज़ी-रोटी कमाता था। एक दिन वह नदी के किनारे पेड़ काट रहा था। अचानक उसका कुल्हाड़ी हाथ से फिसलकर नदी में गिर गया। नदी बहुत गहरी थी, वह उसे निकाल नहीं सका।
लकड़हारा बहुत दुखी होकर नदी किनारे बैठकर रोने लगा। तभी जलपरी प्रकट हुई और उसने रोने का कारण पूछा। लकड़हारे ने पूरी बात ईमानदारी से बता दी।
जलपरी ने नदी में डुबकी लगाई और सोने की कुल्हाड़ी निकालकर लाई। उसने पूछा, “क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?”
लकड़हारे ने कहा, “नहीं, यह मेरी नहीं है।”
फिर जलपरी चाँदी की कुल्हाड़ी लाई। लकड़हारे ने फिर कहा, “नहीं, यह भी मेरी नहीं है।”
अंत में जलपरी उसकी लोहे की कुल्हाड़ी लेकर आई। यह देख लकड़हारा खुश हो गया और बोला, “हाँ! यही मेरी कुल्हाड़ी है।”
जलपरी उसकी ईमानदारी से खुश हुई और उसे तीनों कुल्हाड़ियाँ इनाम स्वरूप दे दीं।
नैतिक शिक्षा:
"ईमानदारी सबसे बड़ी पूंजी है।"
ईमानदार व्यक्ति को अंततः उसका सच्चा फल अवश्य मिलता है।